Sunday, January 31, 2021

The Clever Tailor (Hindi Storytelling Script)

The Clever Tailor by Srividhya Venkat and Nayantara Surendranath (published by Karadi), is a lovely story of a resourceful tailor who finds creative ways of minimizing waste. The book is in English, but I like to conduct the storytelling session in Hindi. Here's the script that I created a while ago. Do note the small snippets which can be set to tune and kids can be asked to repeat those as you go along!


रूपा राम जी बहुत बढ़िया दरजी थे| सबको उनके हाथों के बने कपड़े बहुत पसंद आते थे| कितनी बेहतरीन शेरवानी बनाते थे वह! और सलवार कुर्ती की फिटिंग तो उनसे बेहतर कोई नहीं कर सकता था| उनके हाथों में तो जैसे जादू था| 

रूपा राम जी के ग्राहक सुबह के लेकर शाम तक उनकी तारीफें करते, पर रूपा राम जी खुश नहीं होते थे| उन्हें एक परेशानी थी| उन्हें एक परेशानी थी| उन्होंने हज़ारों लोगों के कपडे सीए थे, पर अपने लिए, या अपने परिवार के लिया कभी कुछ बढ़िया नहीं सिल पाए| कुछ भी अच्छा बनाने की लिए अच्छे कपड़े की जरुरत होती है| और बढ़िया कपड़ा खरीदने के लिए जरुरत होती है पैसों की, जो उनके पास कभी नहीं होते थे| तो वे अपने मन मसोस कर रह जाते थे| एक दिन रूपा राम जी को एक शादी में जाना था| वहाँ जाने के लिए उन्हें एक पगड़ी की जरुरत थी| उनके पास एक पगड़ी थी, बिलकुल पुरानी| बेचारे क्या करते! तो पुरानी पगड़ी पहन कर ही चले गए| पर पता है शादी में क्या हुआ? उनका स्वागत एक नयी पगड़ी के साथ हुआ! रूपा राम जी को नयी पगड़ी इतनी पसंद आयी की वह उसे हर वक़्त पहने रहते| सोते हुए भी, कहते हुए भी, घर के अंदर, घर के बाहर, सब जगह भाई सब जगह! उन्होंने उस पगड़ी को इतना पहना, इतना पहना कि वे उसे पहन पहन कर बोर हो गए| 

पगड़ी का कपड़ा अब भी अच्छा था और रूपा राम जी बहुत चतुर! तो उन्होंने ने उसको काट कर, अपनी बींदणी के लिए एक ओढ़नी बना दी! नयी ओढ़नी पहन कर रूपा राम जी की बींदणी तो ख़ुशी से झूम उठी! पहले तो खुद को आईने में देख कर शर्मायी| उसके बाद तो उसने ओढ़नी को पहने ही रखा! रसोई में, घर में, मेले में, पनघट पे, हर जगह भाई हर जगह! 

अब कोई भी एक चीज़ को हर वक़्त पहने रखे तो कभी न कभी तो उससे बोर हो ही जायेगा ना! बस, बींदणी भी बोर हो गयी| पर रूपा राम जी कोई आम दरजी थोड़े न थे| उन्होंने ध्यान से ओढ़नी को देखा| फिर कुछ मुस्कुराये| फिर झट से अपनी सिलाई मशीन निकली और उस पर काम करने लगे| जब उठे, तो उनके हाथों में अपनी बेटे के लिये एक कुरता था! और वह कुरता इतना बेहतरीन था की उनका बीटा उस कुर्ते को कभी नहीं उतारता था| हर वक़्त पहने ही रहता| स्कूल के अंदर, स्कूल के बाहर, खेल के मैदान में और फिर बागान में! हर वक़्त भाई हर वक़्त!

जब कुरता भी पुराना हो गया, तो पता है उन्होंने क्या किया? अपनी छोटी सी बेटी के लिए एक प्यारी सी गुड़िया बना दी! उस गुड़िया से उनकी बेटी हमेशा खेलती रहती थी, कभी खुद से दूर नहीं होने देती थी| पर एक दिन उनकी बेटी भी अपनी गुड़िया से बोर हो गयी, तो रूपा राम जी ने फिर अपनी कारीगरी दिखाई और कपड़े से एक सुन्दर सा गुलाब का फूल बना दिया! वह गुलाब का फूल घर के अलग अलग कोने में सजाया जाता| लेकिन उस फूल से एक आखरी चीज़ बनी| और वह चीज़ थी एक कहानी! 

कहानी थी रूपा राम जी की पगड़ी की - जिसमें में उन्होंने बनायी एक सुन्दर ओढ़नी| ओढ़नी से बना एक कुर्ता| कुर्ते से बानी एक गुड़िया, और गुड़िया से बना एक फूल, गुलाब का| रूपा राम जी हर आने जाने वाले को यह कहानी बड़े चाव से सुनाते थे| सबसे अच्छी बात तो यह थी, की यह कहानी सुन कर कभी भी कोई बोर नहीं होता था!

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